हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा की गई सीजफायर की घोषणा पर कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया सामने आई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि ये पहली बार है जब अमेरिका ने सीधे तौर पर भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर की बात सार्वजनिक रूप से कही है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रंप के X (पूर्व ट्विटर) पर दिए गए बयान को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस तरह की घोषणाएं भारत की संप्रभुता को प्रभावित कर सकती हैं।
संसद में विशेष सत्र की मांग
सचिन पायलट ने केंद्र सरकार से मांग की है कि इस पूरे मामले को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए, ताकि सभी दल मिलकर एक साझा नीति तय कर सकें। उन्होंने कहा कि भारत की सुरक्षा और विदेश नीति जैसे गंभीर विषयों पर केवल सरकार नहीं, बल्कि संपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया का योगदान होना चाहिए।
उन्होंने 1994 में संसद द्वारा पारित सर्वसम्मत प्रस्ताव की याद दिलाई, जिसमें साफ कहा गया था कि पाक अधिकृत कश्मीर (POK) भारत का अभिन्न हिस्सा है। उस समय सभी राजनीतिक दल एक मंच पर आकर एकमत थे। आज भी उसी एकता की ज़रूरत है।
पुलवामा हमले के बाद एकता का उदाहरण
सचिन पायलट ने पुलवामा हमले के समय की स्थिति का हवाला देते हुए बताया कि उस वक्त भारत सरकार को पूरे विपक्ष का समर्थन मिला था। सभी दलों ने राजनीति से ऊपर उठकर देश के साथ खड़े होकर सेना के साहस को सलाम किया था। पायलट का मानना है कि आज भी वही भावना दोहराने की ज़रूरत है।
अमेरिका की भूमिका और मध्यस्थता पर सवाल
कांग्रेस पार्टी ने अमेरिका की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पायलट ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति द्वारा पहले सीजफायर की घोषणा करना और फिर भारत-पाक संबंधों पर टिप्पणी करना भारत की विदेश नीति में तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप जैसा है। उन्होंने पूछा कि:
यह सीजफायर किन शर्तों पर हुआ है?
क्या पाकिस्तान द्वारा भविष्य में कोई उल्लंघन नहीं होगा इसकी गारंटी है?
अगर यह भारत-पाक का द्विपक्षीय मामला है, तो अमेरिका क्यों बयान दे रहा है?
उन्होंने दोहराया कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, और उसमें किसी तीसरे देश की दखलंदाजी स्वीकार नहीं की जा सकती।
इतिहास से सीख – 1971 का युद्ध और इंदिरा गांधी का नेतृत्व
पायलट ने 1971 के भारत-पाक युद्ध की याद दिलाई जब अमेरिका ने Bay of Bengal में अपना सातवां बेड़ा भेजने की धमकी दी थी, फिर भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने डटकर देशहित में निर्णय लिया। उनका नेतृत्व आज भी याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय स्वार्थ को राजनीति से ऊपर रखा।
साथ ही उन्होंने 2001 में संसद पर हमले की बात भी की, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी थीं। उस समय भी देश ने एकजुट होकर जवाब दिया था। आज उसी एकता की फिर से ज़रूरत है।
आज की ज़रूरत – एक स्पष्ट नीति और राष्ट्रीय एकजुटता
आज जब अमेरिका द्वारा सीजफायर की घोषणा होती है और उसके कुछ ही घंटों बाद भारत और पाकिस्तान की ओर से भी बयान जारी होते हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या भारत अपनी विदेश नीति को लेकर स्पष्ट है?
कांग्रेस का कहना है कि सरकार को स्पष्ट और पारदर्शी नीति बनानी चाहिए।
यह मामला द्विपक्षीय है, और इसमें किसी तीसरे देश को कोई भूमिका नहीं दी जानी चाहिए।
इसलिए संसद का विशेष सत्र बुलाना अनिवार्य है, ताकि सरकार विपक्ष को विश्वास में लेकर रणनीति तय करे।