एक ऐसा मामला जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारत कोई धर्मशाला नहीं! – जानिए क्यों आया ऐसा कड़ा बयान
हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने मानवाधिकार, शरणार्थियों की स्थिति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर गहन बहस को जन्म दिया। एक श्रीलंकाई नागरिक, जो तमिल था और कभी लिट्टे (LTTE) का सदस्य रह चुका था, भारत में शरण मांग रहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका को सख्ती से खारिज करते हुए एक ऐसा बयान दिया जो अब चर्चा का केंद्र बन चुका है – भारत कोई धर्मशाला नहीं है!
मामले की पृष्ठभूमि
इस श्रीलंकाई नागरिक को 2015 में भारत में गिरफ्तार किया गया था। उस पर अवैध गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज किया गया। 2018 में ट्रायल कोर्ट ने उसे 10 साल की सजा सुनाई, जिसे बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने 7 साल कर दिया। हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सजा पूरी होने के बाद उसे तुरंत भारत छोड़ना होगा।
इस याचिका में एक श्रीलंकाई नागरिक ने Supreme Court Case Status में अपील दायर की थी कि उसने भारत में सजा पूरी कर ली है और अब उसे भारत में रहना है
याचिकाकर्ता का पक्ष
सजा पूरी होने के बाद जब उसे देश से निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई, तब उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उसका कहना था कि वह एक तमिल शरणार्थी है और यदि वह श्रीलंका लौटता है, तो उसे जान का खतरा है। उसका दावा था कि उसने कभी लिट्टे के लिए लड़ाई लड़ी थी और इसी वजह से उसे श्रीलंका में प्रताड़ित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि:
क्या भारत को पूरी दुनिया के शरणार्थियों को शरण देनी चाहिए? हम पहले से ही 140 करोड़ की आबादी से जूझ रहे हैं। भारत कोई धर्मशाला नहीं है!
यह टिप्पणी सीधे तौर पर उस सोच पर सवाल उठाती है जिसमें भारत को एक सर्व-संवेदनशील देश मानकर कोई भी विदेशी व्यक्ति यहां स्थायी रूप से बसने की उम्मीद करता है।
Supreme Court collegium का दृष्टिकोण
Supreme Court collegium भले ही मुख्य रूप से न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण जैसे मामलों से जुड़ा होता है, लेकिन ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर कोर्ट का रवैया देश की नीतियों की झलक प्रस्तुत करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारत कोई धर्मशाला नहीं! – जानिए क्यों आया ऐसा कड़ा बयान
क्या संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ?
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि इस प्रकार की निर्वासन की प्रक्रिया अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया कि:
अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं हुआ, क्योंकि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी और सजा कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई।
अनुच्छेद 19 (भारत में बसने का अधिकार) केवल भारतीय नागरिकों के लिए है, न कि विदेशी नागरिकों के लिए।
Supreme Court Cause List में हुआ उल्लेख
यह मामला Supreme Court Cause List में उस दिन के महत्वपूर्ण मामलों में से एक था।
लोग Supreme Court Cause List by Name से भी इस केस को खोजते रहे ताकि जान सकें कि इसका स्टेटस क्या है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारत कोई धर्मशाला नहीं! – जानिए क्यों आया ऐसा कड़ा बयान
कौन हैं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश?
इस समय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार, 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में पदभार संभाला। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लिया, जो मंगलवार को सेवानिवृत्त हो गए। जो न्यायपालिका में सुधार और पारदर्शिता के पक्षधर माने जाते हैं।
कोर्ट ने दिया एक और विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि अगर वह श्रीलंका नहीं लौट सकता, तो किसी तीसरे देश में शरण मांगने का प्रयास कर सकता है। भारत उसकी स्थायी शरणस्थली नहीं बन सकता, खासकर जब उसके ऊपर गंभीर आरोप लगे हों और वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारत कोई धर्मशाला नहीं! – जानिए क्यों आया ऐसा कड़ा बयान
भारत की सीमित जिम्मेदारियाँ और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ
भारत एक ऐसा देश है जो हमेशा से ही शरणार्थियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रहा है। तिब्बती शरणार्थियों से लेकर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों तक, भारत ने हजारों लोगों को आश्रय दिया है। लेकिन आबादी का दबाव, संसाधनों की कमी और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दे आज भारत को ऐसी उदारता से पीछे हटने को मजबूर कर रहे हैं।